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द गर्ल इन रूम 105

अध्याय 22


'उसे बातों में उलझाए रखना, सौरभ ने कहा। 'उससे कोई सवाल जवाब मत करना, बस दोस्ताना बर्ताव कायम

रखना।'

मैंने सिर हिला दिया। हम हीयन होटल की रिसेप्शन लॉबी में थे। होटल

फ़ोन लगाया।

'कौन जनाब?' यह सिकंदर की आवाज़ नहीं थी।

"तुम सिकंदर के दोस्त हो?" "हो।"

"तुम पहलगाम में हो?"

"क्या सिकंदर वहां पर हैं? मैं उसका दोस्त केशव बोल रहा हूँ।' 'सिकंदर कहां है?"

"हां"

"क्या तुम यहां पर आ सकते हो? मूनव्यू रिसोर्ट्स ।'

"यहीं पर है। तुम आ सकते हो?"

"हां, जरूर तुम कौन हो?"

"अहमद जल्दी चले आओ।'

सौरभ और मैं मुनव्यू रिसोर्ट्स की ओर चल पड़े, जो कि होटल हीवन से एक किलोमीटर के फासले पर था। पिछली रात हमने इंस्पेक्टर राणा फोन लगाया था, और उन्हें पूरे मामले की इत्तेला दे दी थी। 'तुम लोग फिर से इस केस में उलझ गए, और कश्मीर तक भी चले गए? अच्छे दीवाने आशिक़ हो तुम, राणा ने कहा था। लेकिन फिर उन्होंने पूरी कहानी सुनी और हमारी मदद के लिए तैयार हो गए। 'वहां से जितनी जल्दी हो सके, बाहर निकल आओ। कश्मीर कोई हौज खास नहीं है। और उस सिकंदर से अकेले में मत मिलो, उन्होंने फ़ोन रखने से पहले कहा। मैंने राणा को फिर से फोन लगाया।

"हम मुनव्यू में उससे मिलने जा रहे हैं.' मैंने हांफते हुए कहा। हम एक ऊंची चढ़ाई चढ़ रहे थे।

'मैं पहलगाम के लोकल पुलिस थाने के सब इंस्पेक्टर सराफ को पहले ही बता चुका हूं। जरूरत पड़ने पर

वो तुम्हारी मदद के लिए तैयार रहेंगे।' "उन्हें हमारे साथ ही वहां चलना चाहिए ' मैंने कहा। 'रिलैक्स, तुम परेशान लग रहे हो।'

परेशानी तो होगी ही। अहमद नाम के किसी आदमी ने सिकंदर का फोन उठाया था। उसी ने हमें यहां

'बुलाया है।'

"ओह, तो वहां पर दूसरे लोग भी हैं?"

"तब तो सराफ को ही वहां पहले पहुचने दो। तुम वहां अकेले मत जाओ। तुम लोग इतने बड़े बेवकूफ़ हो,

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